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इमारत बनती है तो आवाज नहीं होती और न ही आंसू छलकते हैं, लेकिन जब इमारत गिरती है तो तेज आवाज के साथ आंसू भी छलकते हैं। पिछले हफ्ते नेपाल में आई आपदा में मरने वालों की संख्या देखते-देखते छह हजार तक जा पहुंची है। इतनी बड़ी जनहानि से आखिर हमने क्या सबक लिया? क्या हम इस त्रासदी के कारणों में जाना चाहते हैं?
विकास के नाम पर हमने जिस तरह प्रकृति का दोहन किया है, वह आने वाली नस्लों के लिए खतरे का संकेत है। हाल-हाल में भारतीय प्रधानमंत्री ने देशभर में सौ स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है। क्या हम पूरे देश को इमारतों के जंगल में तब्दील होते और एक झटके से ताश के पत्तों की तरह गिरते देखना चाहते हैं? किसी सरकार ने जंगल को आबाद करने की योजना क्यों नहीं बनाई? जो जल-जंगल-जमीन मानव जाति के अस्तित्व के लिए जरूरी है, उनके बारे में चिंता किसी स्तर पर नहीं दिखती। सौ स्मार्ट शहर बसाकर हम अगली पीढ़ी को क्या देने जा रहे? प्रकृति की खूबसूरती को छीनकर कंक्रीट के जंगल लगाना कितना सुखद होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है।
क्या आज इसकी जरूरत नहीं कि हम मिलकर देशभर में सौ जंगल विकसित करने की मांग उठाएं। किसान से जमीन लेकर उस पर जानलेवा उद्योगों को बसाने से कहीं बेहतर होगा। आज की तारीख में हमारे सामने सौ स्मार्ट सिटी का नया तमाशा है।
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